शेखचिल्ली की खिचडी

 शेखचिल्ली की खिचडी


एक दिन शेख्चिल्ले बीमार हो गया। हकीम साहिब रहते थे शहर में। शेखचिल्ली के गाँव से दो मील के फासले पर, जब शेखचिल्ली उनके पास पहुंचा तो उन्होंने बताया यह चार पुडिया सौंफ के अर्क के साथ खाओ। 

 शेखचिल्ली बोला श्रीमान खाऊँ क्या? हकीम साहिब बोले खिचडी। अब शेखचिल्ली जिसने अभी तक खिचडी न खाई थी उस विचार से कि खिचडी शब्द भूल न जाऊं, जबान से खिचडी-२ कहता हुआ घर को चला। लेकिन था गंवार ही खिचडी शब्द भूल गया और खाचिडी-२ अपने आप उसके मुंह से निकलने लगा। रास्ते में एक स्थान पर एक जात अपने खेत की रक्षा कर रहा हटा। उसने जिस समय शेखचिल्ली को खाचिडी-२ कहते हुए सुना तो मार-मार कर उसका भूसा बना दिया और कहने लगा अब खाचिडी न कहना, दूर रहो, समीप मत आओ। उसने दूर रहो समीप मत आओ कहना आरम्भ कर दिया। थोड़ी दूर गया होगा कि वहां चिदीमार जाल फैलाए बैठे थे। उन्होंने भी खूब मरम्मत की और बोले कि अब तुम आते जाते और फंसते जाओ कहना। शेखचिल्ली ने आते जाओ और फंसे जाओ कहना आरम्भ कर दिया। सामने से बहुत से चोर आ रहे थे। उन्होंने शेख्चिल्लीए के यह शब्द सुने तो मारे गुस्से के उनका बुरा हाल हो गया। उन्होंने शेखचिल्ली को इतना पीटा कि अधमरा कर छोड़ दिया. वहां से रिहाई हुई तो शेखचिल्ली थक कर चूर हो गया था। उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि हे खुदा! कोई सवारी भेज, इतने में पीछे से एक सवार आता दिखाई दिया और बोला- ए ओर जानवर! मेरी घोडी की बछेडी कंधे पर उठा लो। 


शेखचिल्ली ने बछेडी कंधे पर उठा ली और बोला-वाह मेरे ईश्वर! इतने वर्ष खुदाई करते हो गए हैं और अभी नीचे ऊपर के अंतर का पता नहीं। मैंने घोडी माँगी थी नीचे को, आपने दे दी ऊपर को।

No comments

Powered by Blogger.